न्यायालय में मंदिरों की लडाई सनातन धर्मावलंबियों की सांस्कृतिक आजादी की लडाई।


श्रीकृष्ण जन्मभूमि मथुरा केस की सुनवाई के बाद अधिवक्ता टीम, उच्च न्यायालय इलाहाबाद


भारत देवभूमि है यहाँ पर साक्षात् ईश्वर ने मानवरूप में जन्म लिया समाज को समय-समय पर सही दिशा दिखलायी। भारत विश्व में आदिकाल से एक विकसित सभ्यता रहा है। वैदिक युग, त्रेता युग और द्वापर युग में धर्म-अधर्म की लडाई के प्रमाण सनातन धर्म ग्रन्थों में मिलते है।

पिछले 2500 वर्षों के इतिहास में अलेक्जेंडर जिसे सिकदंर भी कहते है का भारत पर आक्रमण मिलता है जिसका विजय अभियान राजा पोरस ने रोका था, उसके बाद सिकंदर के सेनापति सेल्युकस निकेटर ने चन्द्रगुप्त मौर्य के सामने झुकने के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते है।

इस्लाम के उदय के बाद भारत में सनातन धर्म की रक्षा के लिए 1000 वर्ष का खूनी संघर्ष का इतिहास मिलता है। सांस्कृतिक अर्थों में यदि इसका विश्लेषण किया जाए तो एक सभ्यता का दूसरी सभ्यता पर श्रेष्ठता और प्रभुत्व का संघर्ष मिलता है।

भारत में पश्चिम से आक्रमणकारी आये जिनके धार्मिक, दैनिक, व सांस्कृतिक जीवन के मूल्य भारतीय सभ्यता से अलग थे। महमूद गजनवी, मोहम्मद गौरी, गुलाम वंश, लोदी, तुगलक, खिलजी, शर्की, मुगल इन सभी में एक बात कॉमन थी कि इन सभी ने भारतीय सभ्यता के केन्द्र मंदिरों को पहले तोडा उन पर अवैध कब्जाकर उनका उपयोग मस्जिद, ईदगाह के रूप में किया। 

उत्तर भारत में सनातन धर्म शिल्पकला की स्थिति

जब हम भारतीय इतिहास पढते है तो 10 वीं शताब्दी से 18 वीं शताब्दी तक उत्तर भारत में हिन्दू शिल्पकला को शून्यता की स्थिति में पाते है और गुलाम वंश और मुगल वंश की शिल्पकला को उत्कर्ष की स्थिति में पाते है।

सनातन धर्म मंदिरों पर अवैध कब्जा

भारत में मंदिर सनातन सामाजिक व्यवस्था के केन्द्र थे, ऐतिहासिक साक्ष्यों व भारतीय पुरातत्व विभाग की रिपोट्स का विश्लेषण करने पर यह पता चलता है कि जो भवन आजकाल इंडो-इस्लामिक शिल्पकला के अनुपम उदाहरण माने जाते है वो मूल रूप से सनातन धर्म के मंदिर है, हिन्दू भवन है उनकी शिल्पकला हिन्दू शिल्पकला है, उनपर अवैध कब्जाकर उनमें उपयोग के अनुसार आवश्यक परिवर्तन कर उनका उपयोग उनकी मूल प्रकृति के विरूद्ध आजतक किया जा रहा है।

न्यायालय में मंदिरों की लडाई सांस्कृतिक आजादी की लडाई।

हमें भौतिक आजादी वर्ष 1947 ई० में मिल गयी लेकिन सनातन धर्मावलंबियों की आजादी अभी अधूरी आजादी है। धर्म को अबाध रूप से मानने की स्वतंत्रता सभी भारतवासियों को भारतीय संविधान देता है। संस्कृति और धर्म किसी भी स्वतंत्र व्यक्ति के जीवन का अभिन्न अंग होता है। सनातन धर्म के मंदिरों पर दूसरी सभ्यता का अवैध कब्जा और मंदिरों को उस अवैध कब्जे से मुक्त करवाने की न्यायालय में कानूनी लडाई अघोषित रूप से सांस्कृतिक आजादी की लडाई है। सनातन धर्म के ईश्वर को स्वंय का अस्तित्व सिद्ध करने के लिए न्यायालय में आना पडता है। जबतक सनातन धर्म के मंदिरो का उपयोग उनकी मूल प्रकृति के विरूद्ध दूसरी सभ्यता के अनुसार होगा तब तक यह आजादी अधूरी आजादी होगी। वर्तमान में मंदिरों के मुक्ति की न्यायायल में लडाई यही अघोषित रूप से सांस्कृतिक आजादी की लडाई है।


लेखक-

अजय प्रताप सिंह, एडवोकेट

उच्च न्यायालय इलाहाबाद, प्रयागराज

 



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