श्रीकृष्ण विग्रह केस आगरा को न्यायालय ने माना पोषणीय, जामा-मस्जिद का प्रार्थना-पत्र हुआ खारिज चलेगा ट्रायल।

 

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लघुवाद न्यायालय आगरा में विचाराधीन योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ट्रस्ट के प्रभु श्रीकृष्ण विग्रह के केस संख्या-659/2023 श्री भगवान श्रीकृष्ण लला विरामान आदि बनाम उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड आदि को न्यायालय ने अपने 26 फरवरी के आदेश द्वारा पोषणीय माना व जामा-मस्जिद पक्ष का क्षेत्राधिकार व आर्डर 7 नियम 11 सीपीसी का प्रार्थना-पत्र सिरे से खारिज कर दिया।

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विपक्षी जामा-मस्जिद की आपत्तियाँ

केस में विपक्षी संख्या- 2 जामा-मस्जिद आगरा ने केस को सुनने हेतु माननीय न्यायालय के क्षेत्राधिकार व वाद-पत्र को खारिज करने के लिए आर्डर 7 नियम 11 सीपीसी में आपत्तियाँ दी थी। जामा-मस्जिद पक्ष की मुख्य आपत्तियाँ निम्नलिखित थी-

1- वादीगण कानूनी व्यक्ति नहीं है।

2- वादीगण ने वाद झूठे तथ्यों पर न्यायालय में डाला है।

3- जामा-मस्जिद वक्फ की संपत्ति है।

4- प्राचीन स्मारक और पुरातात्त्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के अधीन केस प्रतिबंधित है।

5- जामा-मस्जिद एक इस्लामिक ढाँचा है वादीगण को कोई अधिकार नहीं है।

6- लिमिटेशन एक्ट से वाद प्रतिबंधित है।

7- वाद में कोई कॉज ऑफ एक्शन नहीं बताया गया है।

12 फरवरी 2024 को बहस हुई

12 फरवरी को हुई बहस में विपक्षी जामा-मस्जिद की आपत्तियों पर जबाब देते हुए केस के वादी व अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने कहा कि प्रभु श्रीकृष्ण लला एक कानूनी व्यक्ति है और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी प्रकरण में एम० सिद्दीकी बनाम महन्त सुरेश दास व अन्य, सिविल अपील संख्या- 10866-10867 में माना कि हिन्दू ईश्वर भी वाद दायर कर सकते है जिस कारण हिन्दू ईश्वर एक कानूनी व्यक्ति है। भारतीय कानून के अनुसार प्रभु श्रीकृष्ण लला एक अवयस्क है और एक अवयस्क के हितों की रक्षा करना माननीय न्यायालय का दायित्व है और वादीगण ने जो भी तथ्य केस में दिये है वो प्रमाणिक है और औरंगजेब की स्वंय की पुस्तक “मासिर-ए-आलमगीरी” में लिखित है जोकि आज तक र्निविवादित है और जामा-मस्जिद पक्ष ने इस पुस्तक के तथ्यों का विरोध नहीं किया है। अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने दौरान बहस कहा कि जामा-मस्जिद वक्फ की संपत्ति नहीं है आज तक वक्फ अधिनियम,1995 की धारा-4 के अनुसार जामा-मस्जिद का सर्वे नहीं हुआ है, इस संबध में अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के केस सलेम मुस्लिम बरीअल ग्राउंड प्रोटेक्शन कमेटी बनाम तमिलनाडु राज्य में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने माना कि धारा-4 की कार्यवाहियों की अनुपस्थित में संपत्ति को वक्फ की संपत्ति नहीं माना जा सकता है।  कॉज ऑफ एक्शन के संबध में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी आत्मानंद बनाम श्री रामकृष्ण तपोवन व अन्य, सिविल अपील संख्या- 2395/2000 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कॉज ऑफ एक्शन तथ्यों का एक बंडल होता है जोकि वादपत्र में लिखे होते है। पोपट और कोटेचा प्रॉपर्टी बनाम एस०बी०आई० स्टाफ एसोसिएशन 2005 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने माना कि लिमिटेशन एक्ट को तथ्य को आर्डर 7 नियम 11 सीपीसी को निर्धारित करते समय नहीं निर्धारित किया जा सकता है। कृष्ण राय बनाम बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, सिविल अपील संख्या- 4578-4580 /2022 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एस्टोपेल का सिंद्धात कानून को अधिलिखित नही कर सकता है और वाद में कोई भी अनुतोष भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से नहीं माँगा गया है इसलिए प्राचीन स्मारक और पुरातात्त्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 लागू नहीं होता है।

26 फरवरी का आदेश 

माननीय न्यायालय ने 26 फरवरी को आदेश की तिथि नियत की थी। 26 फरवरी को आये आदेश में माननीय न्यायाधीश श्री मृत्युजंय श्रीवास्तव ने वादी पक्ष के तथ्यों व तर्को से सहमत होते हुए जामा-मस्जिद का प्रार्थना-पत्र खारिज कर वाद को पोषणीय माना।

चलेगा ट्रायल

वाद को पोषणीय माने जाने के बाद अब ट्रायल का रास्ता साफ हो गया है। जिससे शीघ्र ही जामा-मस्जिद की सीढियों में दबे रमा-बल्लभ(माता रूक्मणी व प्रभु श्रीकृष्ण) के प्राण-प्रतिष्ठित विग्रह बाहर निकाले जाने की उम्मीद है।

आर्डर 1 नियम 10 सीपीसी का प्रार्थना-पत्र हुआ खारिज

कॉमरेड भजनलाल और मोहम्मद इख्तियार ने केस ने विपक्षी बनने के लिए आर्डर 1 नियम 10 सीपीसी का प्रार्थना-पत्र दिया था जिसमें दौरान बहस दोनों अपने को केस में आवश्यक पक्षकार नहीं साबित कर पाये जिसकारण माननीय न्यायालय ने दोनों के प्रार्थना-पत्र को खारिज कर दिया।


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माननीय न्यायालय ने सुनवाई की अगली तिथि 15 मार्च निर्धारित की है।


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